लाउडस्पीकर पर अजान और हनुमान चालीसा क्यों मुद्दा बना हुआ है

Why Azaan and Hanuman Chalisa on loudspeakers remains an issue

संविधान में यह कहां लिखा है कि पांच वक्त की नमाज के बदले पांच वक्त की हनुमान चालीसा पढ़ी जाए. ये सब कर के धर्म की आड़ में राजनीतिक लाभ क्यों उठाया जा रहा है. भारत में संविधान ही सर्वोपरि है. उससे बढ़कर कुछ भी नहीं है. इसलिए इस तरह की पागलपंती करना बंद कर दें. धर्म के साथ खिलवाड़ कतई उचित नहीं है.

अजान को निशाने पर लेना उस सतत प्रयास का हिस्सा लगता है जो एक समुदाय के बारे में भ्रम पैदा करने, उसे नीचा दिखाने और उसके प्रति नफ़रत फैलाने का एक लंबा अभियान है।

मगर ऐसा क्यों है कि जब भी नींद में खलल पड़ने की बात होती है तो नामी-गिरामी लोग अजान को ही निशाने पर लेते हैं, मुकदमा भी होता है और सरकार व प्रशासन भी अजान वाले लाउडस्पीकर को समस्या मानता है?

समस्या शोर या अजान?

अजान में लगने वाला समयः चूंकि मसजिदों में पाँच बार फर्ज़ नमाज़ होती है इसलिए अजान भी पाँच बार दी जाती है। एक अजान में लगभग एक मिनट का ही समय लगता है। पूरे दिन के लिए 5 मिनट। सुबह में चूंकि बाकी कोलाहल नहीं होता, इसलिए उसकी आवाज़ सबतक पहुँचती है।

बाकी दोपहर, तीसरे पहरे, सूरज डूबने के फौरन बाद और रात की नमाज़ के लिए होने वाली अजान की आवाज़ कम सुनाई पड़ती है या नींद में खलल डालने वाली नहीं मानी जाती। तो अजान पर बहस क्यों?

यह और बात है कि कभी सूरज निकलने से पहले उठना बेहतर माना जाता था, लेकिन जीवन शैली में जब देर तक जगना शामिल हुआ तो सुबह जगना मुश्किल हो गया।

भजन-कीर्तन, शादी-समारोह

सुबह मन्दिरों में सूरज निकलने से पहले सालों भर रिकॉर्डेड भजन बजते हैं। आधे घंटे से घंटे भर के लिए लाउडस्पीकर पर उसका प्रसारण होता है। कई लोग यह भी कहते हैं कि जागरण या यज्ञ से भी नींद में खलल पड़ता है। यह एक रात से तीन रातों तक का होता है। भजन-कीर्तन पर तो कोई आपत्ति-कार्रवाई सामने नहीं आती।

इसके अलावा शादियों में बड़े बड़े साउंड बाक्स से कानफाड़ू शोर होता है। उसके खिलाफ प्रशासन कार्रवाई की बात तो करता है, लेकिन उस पर अमल नहीं करता। नेताओं के भाषण में लाउडस्पीकर उच्चतम स्तर पर होता है। इसपर तो प्रशासन की मौन सहमति होती है।
कोरोना महामारी जैसी बीमारी से बचने के लिए मस्जिदों से आजान भी पढ़ा गया था तब सभी लोगों ने उसको बोहत सराहा था और कोविड के दौरान मस्जिदों के लाउडस्पीकर का इस्तेमाल घरों में नमाज़ पढ़ने के ऐलान के लिए भी हुआ। इसी तरह इसी लाउडस्पीकर से बच्चों को पोलियो से बचाने की दवा दिलाने और कोरोना वैक्सीन लगाने के लिए ऐलान किया जाता था।

सर्वोच्च न्यायालय ने ध्वनि पर निर्देश जारी किये

सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार, आवासीय इलाकों में दिन में ध्वनि की सीमा 55 डेसीबल और रात में 45 डेसीबल होनी चाहिए। इसी तरह, औद्योगिक इलाकों में दिन में 75 डेसीबल व रात में 70 डेसीबल तथा व्यावसायिक इलाकों में दिन में 65 और रात में 55 डेसीबल स्तर तक ध्वनि की अनुमति है

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