Bareilly 40 Urs-e-noori | 140 Crore Durood Shareef Ka Isaal e Sawaab, Huzoor Mufti-e-Aazam hind ki Bargah me

मुस्तफा रज़ा खान कादरी


 40 वा उर्स-ए-नूरी
 40 वा उर्स-ए-नूरी

 40 वा उर्स-ए-नूरी

बरेली: आज मुफ़्ती-ए-आज़म का उर्स मुबारक है जो कि हर शहरों व देशों में बड़ी अच्छे तरीके से मनाया जाता है, लेकिन अफ़सोस करोना वायरस के चलते इस साल यह उर्स चंद लोगों में होगा सोशल मीडिया पर इसको लाइव सुने ताकि सोशल डिस्टेंसिंग बनी रहे, और सभी मुरीदों ने इस उर्स को खास बनाने के लिए 40 वा उर्स-ए-नूरी (हुज़ूर मुफ़्ती-ए-आज़म) के मौक़े पर रज़ा एकेदमी की जानिब से 140 करोड़ दुरूद शरीफ़ का इसाल ए सवाब हुज़ूर मुफ़्ती ई आज़म की बरगाह में पेश किया गया|

कौन है मुफ़्ती-ए-आज़म

मुस्तफा रज़ा खान कादरी (1892-1981) एक भारतीय मुस्लिम विद्वान और लेखक थे, उनके पिता अहमद रज़ा खान की मृत्यु के बाद सुन्नी बरेलवी आंदोलन के नेता रहे। वह अपने अनुयायियों के लिए मुफ्ती-आज़म-ए-हिंद के रूप में जाने जाते हैं।  मौलाना मुहम्मद आफताब कासिम रज़वी द्वारा संकलित एक जीवनी में उन्हें मुफ्ती-ए-आज़म-ए-हिंद के रूप में जाना जाता है।

उन्होंने अरबी, उर्दू, फारसी में इस्लाम पर काफी किताबें लिखीं और फतवा-ए-मुस्तफविया के संकलन में कई हजार इस्लामी समस्याओं पर निर्णय की घोषणा की। हजारों इस्लामिक विद्वानों को उनके आध्यात्मिक उत्तराधिकारी के रूप में गिना जाता था। वह बरेली में जमात रजा-ए-मुस्तफा के मुख्य नेता थे, जिन्होंने विभाजन पूर्व भारत में मुसलमानों को हिंदू धर्म में परिवर्तित करने के लिए शुद्धि आंदोलन का विरोध किया था। भारत में 1977 में आपातकाल के दौरान, उन्होंने एक फतवा अगैनस्ट नसबंदी जारी की, जिसे अनिवार्य कर दिया गया और 6.2 मिलियन भारतीय पुरुषों को केवल एक वर्ष में निष्फल कर दिया गया। ऐसी परिस्थितियों में मुस्तफा रज़ा खान ने इंदिरा गांधी द्वारा दिए गए भारत सरकार के इस आदेश का तर्क दिया और उसको रद्द करवा दिया|

Post a Comment

0 Comments