सयैद अताउल्ला शाह बुख़ारी (23 सितम्बर 1892- 29 अगस्त 1961) |
बरेली: जंगे आज़ादी के कुछ अहम मुस्लिम मुजाहिदीनों के बारे में बताना इसलिए ज़रूरी हो गया है क्योंकि "Quit India - अंग्रेजो भारत छोड़ो" और "Simon go back - साइमन वापस जाओ" जैसे नारे देने वाले मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी ही थे जिन्होंने ये मुहीम चलायी इसलिए तंज़ीम उलेमा ए इस्लाम ने जंगे आज़ादी के सिपे सालारो को याद करने का एक सिलसिला शुरू किया है। इसी सिलसिले के अहम कड़ी के तौर पर सयैद अताउल्ला शाह बुख़ारी (23 सितम्बर 1892- 29 अगस्त 1961) का नाम भी आता है।
तंज़ीम उलेमा ए इस्लाम के राष्ट्रीय महासचिव मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी ने अखबार को जारी किए गए एक बयान में कहा कि भारतीय उपमहाद्वीप के एक मुस्लिम हनफी, विद्वान, धार्मिक और राजनीतिक नेता थे। वो मजलिसे अहरार-ए-इस्लाम के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उनके जीवनी लेखक श्री आगा शोरिश कशमीरी कहते हैं कि बुख़ारी का सबसे बड़ा योगदान भारतीय मुसलमानों के बीच मजबूत ब्रिटिश विरोधी भावनाओं का अंकुरण था। वह अहरार आन्दोलन के सबसे उल्लेखनीय नेताओ में से एक थे जो मोहम्मद अली जिन्ना के विरोधी और एक स्वतंत्र पाकिस्तान की स्थापना के विरोध के साथ- साथ अहमदिया आन्दोलन के विरोध से जुड़े थे, उन्हें एक पौराणिक बयानबाज़ी के रूप में जाना जाता है, जिसने उन्हें मुसलमानों के बीच प्रसिद्द बना दिया।
मजलिसे अहरार-ए-इस्लाम की स्थापना
मजलिस-ए अहरार-ए इस्लाम (उर्दू: مجلس احرارلأسلام), जिसे संक्षेप में अहरार के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय उपमहाद्वीप में एक धार्मिक मुस्लिम राजनीतिक दल है जिसका गठन 29 दिसंबर को ब्रिटिश राज (भारत के विभाजन से पहले) के दौरान हुआ था।और पढ़े:
जीवन परिचय
मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी ने अपने बयान में आगे कहा कि उन्होंने 1916 में अपने धार्मिक और राजनीतिक जीवन की शुरुआत किया, उनके भाषणों में ग़रीबो के दुखों और कष्टों को चित्रित किया गया था और अपने दर्शकों से वादा किया था कि उनके कष्टों का अंत ब्रिटिश शासन के अंत के साथ होगा। अपने राजनीतिक जीवन के पहले चरण के रूप में उन्होंने 1921 में कोलकाता से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के आन्दोलनों में भाग लेना शुरू किया, जहां उन्होंने एक भरा हुआ एक ज़ोशीला भाषण दिया और उस भाषण के कारण 27 मार्च 1921 को गिरफ्तार कर लिए गए। वो ब्रिटिश प्रशासन के लिए चुनौती बन गये, उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा राजद्रोह का प्रचार करने में बिताया, वह एक मनोरंजक वक्ता थे जो भीड़ को प्रभावित कर सकते थे।
सयैद अताउल्ला शाह बुख़ारी ने 1943 में भारत के विभाजन के विरोध में एक प्रस्ताव पारित किया के मोहम्मद अली जिन्ना की हम आलोचना करने हैं और उनकी दो क़ौमी नज़रिए की मुख़ालिफत करते हैं।
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उनकी 29 अगस्त 1961 को मृत्यु हो गई। आज के दिन हम जंगे आज़ादी के इस सिपेसलार को याद कर रहे हैं.
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